राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी का उद्बोधन विराट धर्म संसद, रामलीला मैदान दिल्ली, दिनांक 09/12/2018

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी का उद्बोधन
विराट धर्म संसद, रामलीला मैदान दिल्ली
09/12/2018

स्थान - नई दिल्ली.

                    यहां पर उपस्थित संतों की विशाल धर्मसभा के दर्शन करके हम सब धन्य हैं. हम सब के अन्तःकरण की भावनाओं को पूज्य संतों ने शब्द रूप दिया है.
यह लड़ाई, यह संघर्ष तीन शतकों से इस देश ने देखा है. समय-समय पर राम भक्तों ने अपनी जागृति का परिचय सारे विश्व को दिया है. आज की यह धर्मसभा जो बीच के कुछ कालखंड में रुकी होगी तो 30 वर्ष पूर्व फिर जो पुनर्जागरण का सत्र प्रारम्भ हुआ, आज की युवा पीढ़ी के अन्तःकरण में इसके प्रति कितनी आस्थाएं हैं, कितनी पीड़ा है, कितनी अपेक्षाएं हैं, यह धर्मसभा उस दर्शन को कराती है, उस जागृति का परिचायक है.
कई पूछते हैं, यह कब तक चलता रहेगा तो मैं तो इतना ही कहूंगा कि जब तक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण नहीं होगा, भव्य मंदिर निर्माण नहीं होगा तब तक यह अनवरत चलता रहेगा. हमारी इच्छा है, भारत का अपना स्वभाव है कि हम इस प्रकार के सारे विषयों को सद्भावना और शांति के साथ ही चलाना चाहते हैं. हमारा किसी के साथ संघर्ष नहीं है. और अगर संघर्ष किसी प्रकार का है तो भारत में बाहर से जो विदेशी शक्तियां आईं, आक्रांता आए, इस समाज को भय ग्रस्त करते रहे, मिटाने की कोशिश करते रहे, ऐसे विदेशी आक्रांताओं के साथ हमारा संघर्ष है. इस देश में रहने वाले सभी सम्प्रदाय, सभी प्रकार की पूजा पद्धति अपनाने वाले किसी के साथ भी हमारा कोई संघर्ष नहीं है. इसलिए हम चाहते हैं, सब शांति से, सद्भावना से हो. जो भी इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं हम उन सब प्रयासों का स्वागत करते हैं. इसलिए सम्बंधित सभी लोग सकारात्मक पहल करें, इसकी आवश्यकता है. अगर संघर्ष ही करना होता तो इतने दिन तक राह नहीं देखते.
वर्ष 2010 में उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने स्वीकार कर लिया, लेकिन अगर कुछ कमी छोड़ दी होगी तो इसलिए हम सर्वोच्च न्यायालय में गए. हम सर्वोच्च न्यायालय से अपेक्षा करते हैं कि वो छोटी सी कमी को दूर करे.
दुनियाभर का इतिहास यह बताता है कि कोई भी एक राष्ट्र भक्त समाज, देशभक्त समाज गुलामी के, परतन्त्रता के चिन्हों को, आक्रांताओं की निशानियों को कोई भी स्वाभिमानी समाज स्वीकार नहीं करता है. और हम तो यहां पर इस देश के रहने वाले हैं, उनका भी एक स्वाभिमान है. यहां के125 करोड़ लोगों के मन की भावना होनी चाहिए कि आक्रांताओं की निशानियों को हम दूर करके रहेंगे. यही हम सबका स्वप्न है, यही हम सब लोगों की आकांक्षा है.
अनेक महापुरुषों ने हम सबके सामने एक स्वप्न रखा है कि देश रामराज्य चाहता है. राम राज्य में न्याय है, राम राज्य में सुरक्षा है, राम राज्य में विकास है, रामराज्य में आस्थाओं की सुरक्षा है. राम राज्य शांति का संदेश देने वाला है, इस राम राज्य की हम आकांक्षा करते हैं.
भारत में भिन्न-भिन्न प्रकार के सम्प्रदायों के मार्ग पर चलने वाले क्या शांति नहीं चाहते? फिर वे किसी भी समाज, सम्प्रदाय के अनुयायी हों, सभी लोग यह चाहते हैं कि यहां राम राज्य हो, राम राज्य कोई धर्म राज्य नहीं होता, किसी सम्प्रदाय का राज्य नहीं होता, रामराज्य तो सुखशांति को बहाल करने वाला राज्य होता है. ऐसा अनेक महापुरुषों ने कहा है. महात्मा गांधी ने भी कहा कि हम राम राज्य का स्वप्न देख रहे हैं.
सवा सौ करोड़ का देशभक्त समाज आंदोलन करते हुए भी यही भाव रखता है कि यहां पर न्याय व्यवस्था है. उसकी प्रतिष्ठा बनी रहनी चाहिए. यहां का न्यायालय है, उसकी प्रतिष्ठा बनी रहनी चाहिए. जिस देश में न्याय व्यवस्था और न्याय के प्रति अविश्वास का भाव जगता है उस देश का उत्थान होना असम्भव है.
इसलिए हम चाहते हैं कि न्याय व्यवस्था भी इसका चिंतन करे, विचार करे.
आज सत्ता के केन्द्र में जो लोग हैं, हम उनसे भी अपेक्षा करते हैं कि इतनी बड़ी जो हिन्दू समाज की शक्ति है उनकी भावनाओं को सम्मानित करे. अपने इस सम्मान को प्रतिष्ठापित करने के लिए जो-जो भी कदम उठाने चाहिएं वो कदम उठाने की दिशा में बढ़ना चाहिए. लोकतंत्र में सत्ता की भी अपनी शक्ति होती है. आज की वर्तमान सत्ता से हम अपील करते हैं कि अपने पूरे सामर्थ्य का इस्तेमाल करते हुए इस दिशा में आगे बढ़े. लोकतंत्र में जनता की आकांक्षा को, जनसामान्य की आकांक्षाओं की पूर्ति करना सत्ता की प्राथमिकता होनी चाहिए. जनभावनाओं की उपेक्षा करते हुए, जनभावनाओं का अपमान करते हुए यह देश कभी स्वाभिमान से खड़ा नहीं हो सकता. इस देश की सब प्रकार की व्यवस्थाओं को इसके बारे में सोचने की आवश्यकता है और लोकतंत्र में तो हम कहेंगे कि सत्ता सर्वोपरि नहीं, परन्तु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली होती है. सत्ता के केन्द्र में बैठे लोगों को समझने की यह आवश्यकता है.
हमारा विश्वास है कि आज केंद्र में सत्ता संचालित करने वाले बंधु इस समाज की भावनाओं से भलीभांति परिचित हैं. केवल परिचित नहीं तो सहमत भी हैं. अंतर के मन से अगर प्रश्न पूछेंगे तो हम जो कह रहे हैं उसके अलावा और कोई विचार वहां पर नहीं होगा, ऐसा हमारा विश्वास है. इस विश्वास को बनाए रखना होगा. कभी तो लगता है कि उन्होंने भी अपना एक संकल्प घोषित किया है, अयोध्या में ही राम मंदिर बनेगा, रामजन्मभूमि पर ही बनेगा. मंदिर वहीं बनाएंगे की घोषणा इन सब लोगों ने की है जो आज सत्ता में बैठे हुए हैं, उनका भी यह संकल्प है. मैं समझता हूं कि यह संकल्प पूर्ति का अवसर अब आ गया है. बिना किसी झिझक के, बिना किसी संकोच के अपने संकल्प को पूर्ति करने की दिशा में उन्हें बढ़ना चाहिए. यही हम सब उनसे निवेदन करते हैं.
संविधान का मार्ग है, और लोकतंत्र में संसद का भी अपना अधिकार है. संसद का दायित्व भी है, इसलिए यहां के पूज्य संतों के द्वारा जो व्यक्त किया गया, करोड़ों राम भक्त जो चाहते हैं तो कानून बनाने की दिशा में वर्तमान सरकार को पहल करनी चाहिए. इसका कोई अन्य विकल्प अभी ध्यान में नहीं आता है. अगर यह पुनीत कार्य होना है तो इसकी जितनी भी बाधाएं हैं, उन बाधाओं को दूर करने के लिए निर्भयता से आगे आने की आवश्यकता है. यही हम सब रामभक्तों का निवेदन है. हम भीख नहीं मांग रहे हैं. हम अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं और उन भावनाओं का सम्मान करना, भावनाओं की, अपेक्षाओं की पूर्ति करना लोकतंत्र में सत्ता की इसमें बड़ी भूमिका होती है. हमें विश्वास है, आज सत्ता में बैठे बन्धु इन सब बातों को समझकर एक सकारात्मक पहल की दिशा में कदम उठाएंगे, यह हम सब विश्वास व्यक्त करते हैं.
वर्ष 1992 में देश के कोने-कोने से आए कारसेवक रामभक्त उन्होंने अपनी शक्ति, सामर्थ्य का परिचय दिया और आक्रांताओं की उस निशानी को मिटा दिया. लेकिन काम अधूरा हुआ. ढांचा तो ध्वस्त हुआ, समाप्त हुआ, उसकी निशानी कुछ नहीं बची. लेकिन भगवान राम तो वहां पर एक अस्थाई निवास में रह रहे हैं. जब जब कोई भी वहां पर दर्शन करने के लिए जाता है. पीड़ा का अनुभव करता है, एक वेदना का अनुभव करता है कि क्या हमारे आराध्य सालों साल इसी तरह के अस्थाई भवन में रहेंगे. अस्थाई आवास में रहेंगे और क्या रामभक्त देखते रहेंगे. अभी जब मैं अयोध्या गया, दर्शन किये, मैं फिर उसी भावना को व्यक्त करना चाहता हूं कि आज देशभर के रामभक्त, रामभक्तों द्वारा निर्मित एक विशाल भव्य मंदिर में भगवान राम का दर्शन करना चाहते हैं. अस्थाई निवास का कालखंड समाप्ति की ओर चल पड़ा है. थोड़ा और धक्का देने की आवश्यकता है. और निर्माण की प्रक्रिया शुरु होने की आवश्यकता है. हम सभी चाहते हैं कि अपने आराध्य का दर्शन उस भव्य राममंदिर में हो, जिसका संकल्प, जिसका मानचित्र, जिसकी कल्पनाएं, लोगों ने की हैं. देशभर के लोगों ने अपने गांव-गांव से रामशिलाओं का पूजन करते हुए अयोध्या में भेजा है, ऐसी सारी कल्पनाओं को लेकर फिर एक बार भव्य राममंदिर निर्माण हो यही हम सब लोग चाहते हैं, यही हमारी इच्छा है.
मैं तो कहूंगा कि इस मंदिर का निर्माण भविष्य में आने वाले रामराज्य की नींव बनेगा, उसका आधार बनेगा. भविष्य का निर्धारण होगा. भविष्य में यह अपना भारत देश, हिन्दुस्तान, समाज कौन सी दिशा में आगे बढ़ने वाला है, उसकी दिशा निर्धारण करने का एक जो बड़ा चरण है वह इस भगवान राम के मंदिर का भव्य निर्माण यह उसका प्रारम्भ है. सारे विश्व को हम एक मानवता का संदेश देना चाहते हैं, सारे विश्व को समन्वय का संदेश देना चाहते हैं. भगवान राम का संदेश, भगवान राम का जीवन यह केवल भारत के लिए नहीं, यह तो सारी मानव जाति के लिए एक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है. इसलिए हम सारे विश्व के समुदाय का आह्वान करते हैं कि इसको संकुचितता से, साम्प्रदायिक दृष्टि से न देखें. यह किसी भी एक स्वाभिमानी देश के सम्मान का प्रतीक है. यह सबका अधिकार है. स्वतंत्र देश को अपने सारे स्वाभिमान स्थापित करने का अधिकार है और इसलिए उस पुनर्प्रतिष्ठा का यह कार्य प्रारम्भ होने वाला है, भगवान राम के मंदिर के साथ.
इसलिए भविष्य का भारत कैसा होगा यह निश्चित होने वाला है. इस प्रकार की बाधाएं दूर होने के बाद जब मंदिर का कार्य प्रारम्भ होगा, कई बाधाएं दूर होंगी. देश के धर्माचार्य मठाधिपति, महामंडलेश्वर, आचार्य, जनसामान्य के साथ-साथ गांव-गांव में रहने वाला पढ़ा-लिखा, अनपढ़, धनवान, सम्पन्न गांव का रहने वाला, वनांचल का रहने वाला, नगरों में रहने वाला यह करोड़ों रामभक्तों का जो भाव है वो धर्माचार्यों के साथ उनकी भी अपनी भावनाएं हैं. इसलिए उन आकांक्षाओं की, इच्छाओं को शीघ्रता से, पूरा होना है. बहुत वर्षों तक राह देख ली है, हमने न्यायालय का सम्मान करते हुए अभी तक राह देखी है, लेकिन अब लगता है कि न्यायालय की राह देखते-देखते, हमारी भी राह देखने की एक सीमा आ गई है. और अब एक ही विकल्प बचता है जो सब संतों ने कहा, सब धर्माचार्यों ने कहा, सभी की भावना है कि कानून बनाते हुए      इसकी सब प्रकार की बाधाएं शीघ्रता से दूर हों. यही हम सब लोगों की आकांक्षा है.
और मैं अंत में यही कहूंगा कि हमें विश्वास है कि जो देशभर में सैकड़ों सभाएं हो रही हैं, इसमें लग रहे जय श्रीराम के नारे न्यायालय तक पहुंचेंगे. न्यायालय भी जनभावनाओं को समझकर उचित दिशा में कदम उठाएगा. इस प्रकार का विश्वास हम न्यायालय के प्रति व्यक्त करते हैं. न्याय व्यवस्था को प्रार्थना करते हैं, निवेदन करते हैं कि अब विचार करे, जनभावनाओं का सम्मान करे. और जो हिन्दू के लिए न्यायोचित अधिकार है, उस अधिकार को सुरक्षित करें. यही हम न्यायालय से अपेक्षा करते हैं.
30 वर्ष पूर्व इस देश में एक लहर चली, एक गीत चला. आज उस गीत की पंक्तियों को स्मरण करने की आवश्यकता है. उस समय हमने कहा था - ‘कोटि-कोटि हिन्दू जन का, कोटि-कोटि हिन्दू जन का हम ज्वार उठाकर मानेंगे’ ज्वार उठना शुरु हुआ है. हम करना क्या चाहते हैं तो हम कहते हैं कि ‘ज्वार उठाकर हम इस भारत को भी भव्य बनाएंगे. और भगवान राम का भी मंदिर भव्य बनाकर रहेंगे. फिर एक बार मैं कहूंगा कि संकल्प पूर्ति तक अनवरत चलने वाला यह प्रयास, यह आंदोलन, चलता रहेगा, चलता रहेगा. हम सब रामभक्त, रामभक्ति को शक्ति के साथ प्रकट करते रहें. इसी प्रार्थना के साथ और फिर एक बार सब पूज्य संतों के चरणों में प्रणाम करते हुए मैं आप सब को धन्यवाद देते हुए मेरी बात पूरी करता हूं.

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