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Showing posts from April, 2019

पानीपत का तीसरा युद्ध और महिलाएं

History Capsules : जनवरी 1761 में पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठाओं को हराने के बाद अहमद शाह अब्दाली 22 हज़ार मराठा स्त्रियों का अपहरण करके अफगानिस्तान ले जा रहा था. ये बात सिख सरदारों तक पहुंची और उन्होंने फैसला किया कि युद्ध में जो हुआ वो हुआ लेकिन हमारे देश की स्त्रियों को ये अफगानिस्तान बाजार में बेचने और अपने सैनिकों की हवस पूरी करने नहीं ले जा सकता. सिखों ने जत्थे बना कर अफगान सेना पर टुकड़ों में आक्रमण करने शुरू कर दिए और चेनाब नदी पार करने तक अफगान सेना को युद्ध में लूटा हुआ धन और बंदी बनायीं गयीं स्त्रियां छोड़ के पहाड़ों में निकलना पड़ा. ये वो सेना थी जो पानीपत जैसा विशाल युद्ध जीत के आयी थी. अहमद शाह अब्दाली सिखों की इस दिलेरी से बहुत नाराज़ हुआ..उसने तीन चार महीने बाद ही नूरुद्दीन के नेतृत्व में 12000 शाही सैनिकों को सयालकोट में मौजूद सिख किले पर हमला करने भेजा. चेनाब नदी के किनारे लड़े गए इस युद्ध में सिख हालांकि अफगानों से कम संख्या में थे लेकिन फिर भी उन्होंने नूरुद्दीन एंड टीम की जम के मार लगायी और नूरुद्दीन ने वहाँ से निकलने में ही भलाई समझी. नूरुद्दीन जब अपने सैनिकों

राम शबरी संवाद

एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से बोल फूटे: "कहो राम! सबरी की डीह ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ?" राम मुस्कुराए: "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मूल्य...?"     "जानते हो राम! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ जब तुम जन्में भी नहीं थे। यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो? कैसे दिखते हो? क्यों आओगे मेरे पास..? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा..." राम ने कहा: "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को सबरी के आश्रम में जाना है।"      "एक बात बताऊँ प्रभु! भक्ति के दो भाव होते हैं। पहला मर्कट भाव, और दूसरा मार्जार भाव। बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है ताकि गिरे न... उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है........ ".....पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। मैं तो उस