पानीपत का तीसरा युद्ध और महिलाएं
History Capsules :
जनवरी 1761 में पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठाओं को हराने के बाद अहमद शाह अब्दाली 22 हज़ार मराठा स्त्रियों का अपहरण करके अफगानिस्तान ले जा रहा था. ये बात सिख सरदारों तक पहुंची और उन्होंने फैसला किया कि युद्ध में जो हुआ वो हुआ लेकिन हमारे देश की स्त्रियों को ये अफगानिस्तान बाजार में बेचने और अपने सैनिकों की हवस पूरी करने नहीं ले जा सकता. सिखों ने जत्थे बना कर अफगान सेना पर टुकड़ों में आक्रमण करने शुरू कर दिए और चेनाब नदी पार करने तक अफगान सेना को युद्ध में लूटा हुआ धन और बंदी बनायीं गयीं स्त्रियां छोड़ के पहाड़ों में निकलना पड़ा. ये वो सेना थी जो पानीपत जैसा विशाल युद्ध जीत के आयी थी.
अहमद शाह अब्दाली सिखों की इस दिलेरी से बहुत नाराज़ हुआ..उसने तीन चार महीने बाद ही नूरुद्दीन के नेतृत्व में 12000 शाही सैनिकों को सयालकोट में मौजूद सिख किले पर हमला करने भेजा. चेनाब नदी के किनारे लड़े गए इस युद्ध में सिख हालांकि अफगानों से कम संख्या में थे लेकिन फिर भी उन्होंने नूरुद्दीन एंड टीम की जम के मार लगायी और नूरुद्दीन ने वहाँ से निकलने में ही भलाई समझी.
नूरुद्दीन जब अपने सैनिकों के साथ भाग रहा था तब दूसरी तरफ से आ रहे सिख जत्थे ने लाहौर के बाहर उसकी सेना पर हमला कर दिया. उसकी पूरी सेना ने सिख जत्थे के सामने सरेंडर किया और नूरुद्दीन ने भाग कर अपनी जान बचाई.
उसके बाद फिर से २ महीने बाद अब्दाली के चढाने पर आबिद खान सेना लेके गुजरांवाला (मौजूदा पाकिस्तान) में फिर से सिखों से भिड़ने की गलती कर बैठा. सिख जत्थे ने न सिर्फ तबियत से उसकी सेना को कूटा बल्कि सारी बन्दूक तलवारें भी छीन लीं.
ये सब पानीपत के तृतीय युद्ध के 6 महीने बाद ही हो रहा था. किताबें हमारी हमारी हार पर ही रुक जाती हैं, हारने के बाद हम जितनी बार उठ खड़े हुए और वापस खूंटा गाढ़ा वही हमारा असली इतिहास है जो खोजने पर ही मिलता है.
जनवरी 1761 में पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठाओं को हराने के बाद अहमद शाह अब्दाली 22 हज़ार मराठा स्त्रियों का अपहरण करके अफगानिस्तान ले जा रहा था. ये बात सिख सरदारों तक पहुंची और उन्होंने फैसला किया कि युद्ध में जो हुआ वो हुआ लेकिन हमारे देश की स्त्रियों को ये अफगानिस्तान बाजार में बेचने और अपने सैनिकों की हवस पूरी करने नहीं ले जा सकता. सिखों ने जत्थे बना कर अफगान सेना पर टुकड़ों में आक्रमण करने शुरू कर दिए और चेनाब नदी पार करने तक अफगान सेना को युद्ध में लूटा हुआ धन और बंदी बनायीं गयीं स्त्रियां छोड़ के पहाड़ों में निकलना पड़ा. ये वो सेना थी जो पानीपत जैसा विशाल युद्ध जीत के आयी थी.
अहमद शाह अब्दाली सिखों की इस दिलेरी से बहुत नाराज़ हुआ..उसने तीन चार महीने बाद ही नूरुद्दीन के नेतृत्व में 12000 शाही सैनिकों को सयालकोट में मौजूद सिख किले पर हमला करने भेजा. चेनाब नदी के किनारे लड़े गए इस युद्ध में सिख हालांकि अफगानों से कम संख्या में थे लेकिन फिर भी उन्होंने नूरुद्दीन एंड टीम की जम के मार लगायी और नूरुद्दीन ने वहाँ से निकलने में ही भलाई समझी.
नूरुद्दीन जब अपने सैनिकों के साथ भाग रहा था तब दूसरी तरफ से आ रहे सिख जत्थे ने लाहौर के बाहर उसकी सेना पर हमला कर दिया. उसकी पूरी सेना ने सिख जत्थे के सामने सरेंडर किया और नूरुद्दीन ने भाग कर अपनी जान बचाई.
उसके बाद फिर से २ महीने बाद अब्दाली के चढाने पर आबिद खान सेना लेके गुजरांवाला (मौजूदा पाकिस्तान) में फिर से सिखों से भिड़ने की गलती कर बैठा. सिख जत्थे ने न सिर्फ तबियत से उसकी सेना को कूटा बल्कि सारी बन्दूक तलवारें भी छीन लीं.
ये सब पानीपत के तृतीय युद्ध के 6 महीने बाद ही हो रहा था. किताबें हमारी हमारी हार पर ही रुक जाती हैं, हारने के बाद हम जितनी बार उठ खड़े हुए और वापस खूंटा गाढ़ा वही हमारा असली इतिहास है जो खोजने पर ही मिलता है.
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