कश्मीर के गौरवधाली इतिहास का वो पन्ना जिस पर संपूर्ण भारत को गर्व है।
कश्मीर के गौरवधाली इतिहास का वो पन्ना जिसपर संपूर्ण भारत को गर्व है।
-भारत
-चौथी शताब्दी ई.
विभिन्न गणजातियों का स्थानपरिवर्तन और उनका अमलगमीकरण जारी है जिससे वर्णव्यवस्था से विकसित हुई जातिव्यवस्था क्रमशः कठोर होती जा रही है और इसमें प्राचीन काल के सूत्रग्रंथ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं जिनके आधार पर 'वर्ण संकरता' की ओट में सैकड़ों जातियों और उपजातियों के अंबार खड़े कर दिये गये हैं और उनके कर्म निर्धारित कर दिये गये हैं।
परंतु कुछ प्राचीन क्षत्रियों व ब्राह्मण कुलों के नागों से वैवाहिक संबंधों ने एक ऐसी नई मिश्रित जाति को जन्म दिया जिसमें ब्राह्मणों की मेधा व क्षत्रियों का शौर्य एक साथ उपस्थित था।
******** #कार्यस्थ या #कायस्थ *******
चित्रगुप्त में अपने कर्म का आदर्श और उत्पत्ति देखने वाली इस जाति ने संभवतः अपने मूल के संकेत दिये हैं कि किस तरह वे प्राचीन ब्राह्मणों और नागवंशी क्षत्रियों के रक्त मिश्रण से उत्पन्न हुए।
मेधा इतनी विकसित थी कि प्रशासन में ब्राह्मणों का एकाधिकार व 'अग्रहार भूमि' के रूप में राज्य के संसाधनों का अनुचित शोषण समाप्त कर दिया और ब्राह्मण त्रस्त हो कह उठे ---
"भक्ष्यमाणा प्रजा रक्ष्या कायस्थे च विशेषतः"
और जब उनमें से एक ने तलवार उठाई तो भूगोल की बाधाओं को खंड खंड कर दिया और भारत व हिंदुत्व के शत्रु उनके नाम से ही थर्राने लगे।
ऐसे ही एक #नागवंशी #कर्कोटक गोत्र के कायस्थ कुल में में जन्मा था वो जिसने अपने खड्ग की नोक से लिखा अपना इतिहास।
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कश्मीर में गोनंद वंश के अंतिम शासक बालादित्य के कार्यालय में नियुक्त था एक बेहद रूपवान, बुद्धिमान और तेजस्वी पुरुष, जाति से #कर्कोटक #वंशी #कायस्थ परंतु ज्ञान में ब्राह्मण और तेज में क्षत्रिय। नाम था #दुर्लभवर्धन
उधर वृद्ध राजा की इकलौती संतान राजकुमारी #अनंगलेखा ।
राजा ने ज्योतिषियों की भविष्यवाणी के प्रभाव में दोंनों का विवाह करवाया जिससे राजा की मृत्यु के बाद राजसिंहासन दामाद को मिल गया और इस तरह 625 ई. में भारतीय इतिहास के प्रथम और एकमात्र #कायस्थ #राजवंश का प्रारंभ हुआ।
इसी राजवंश में आगे जन्मा वो महापुरुष जो अपने जीवनकाल में ही एक मिथक (Living legend) बन गया।
-जिसके खड्ग ने भारत की समस्त राजसत्ताओं को नतशिर कर किया।
-विदेशी शक्तियां भी जिससे थर थर कांपती थीं।
-देवता भी जिसका आदेश मानने को विवश थे।
-रेगिस्तान में भी जो उम्मीदों की गंगा बहा सकता था।
-वे थे हिंदुत्व रक्षक,म्लेच्छहंता, इस्लामविनाशक, दिग्विजयी.......
****#महाराज #ललितादित्य #मुक्तापीड****
सन 724ई.
#वज्रादित्य के प्रतापी शासनकाल और #तारापीड के क्रूर शासन के बाद कश्मीर अव्यवस्था के दौर से गुजर रहा था।
यद्यपि #मुहम्मद #बिन #कासिम की काँगड़े के पास वज्रादित्य के हाथों पराजय और फिर मुहम्मद बिन कासिम की वीभत्स मृत्यु के बाद अरब पीछे हट गये थे परंतु अब वे फिर से आक्रमण की तैयारी कर रहे थे।
ऐसी विषम परिस्थितियों में ललितादित्य ने सिंहासन ग्रहण किया।
प्रारंभिक कठिनाइयों से उबरकर उन्होंने दिग्विजय प्रारम्भ की।
प्रथम प्रतिद्वंदी थे उत्तर भारत सर्वाधिक शक्तिशाली नरेश अरबसैन्य विनाशक महाराज यशोवर्मन। मंत्रियों के दुर्भाग्यपूर्ण अहं की लड़ाई में हजारों सैनिकों का विनाश हुआ और अंततः ललितादित्य विजयी हुए।
उसके बाद पूर्वी समुद्रतट पर कलिंग से होते हुए दक्षिण में महाराष्ट्र की ओर मुड़े। चालुक्यों व रठिका रानी ने विनम्रता व कूटनीति से काम लिया और ललितादित्य #कर स्वीकार कर आगे बढ़ गये।
मालव क्षेत्र भी नत हुआ पर इसने प्रतिहारों के उत्कर्ष का रास्ता खोल दिया।
अंततः दिग्विजय पूरी हुई।
परंतु उनके तीन सर्वाधिक महान कार्य तो अब किये जाने थे।
1-- तिब्बत को पराजित किया गया।
2-- #जुनैद द्वारा कश्मीर की ओर भेजी गई सेना को पूरी तरह नष्ट तो कर ही दिया गया, साथ ही नागभट्ट प्रतिहार, बप्पा रावल और अवनिजनाश्रय पुलिकेशी के नेतृत्व में बने हिंदू संघ को भी सहायता भी भेजी गई जिससे न केवल अरबों को बुरी तरह पराजित किया गया बल्कि जुनैद के बाद स्थानांतरित हुये सभी प्रमुख अरब सेनापति मारे भी गये।
** भारत में इस्लाम की यह दूसरी सबसे बुरी हार थी।
3-- भारत के शौर्य का परिचय देने के लिये ललितादित्य ने प्रथम पश्चिम में ईरान की ओर तथा उत्तरी दिशा की ओर प्रस्थान किया व अफगानिस्तान में तुर्कशाहियों को उखाड़ कर हिन्दूशाही राजवंशको स्थापित किया। ललितादित्य यहीं नहीं रुके बल्कि मध्य एशिया में आगे बढते हुए चीनियों से गठबंधन कर तुर्कों का भयंकर विनाश करते हुए #तकलामाकन रेगिस्तान को पार करते हुए #गोबी मरुस्थल तक जा पहुंचे। इस क्षेत्र में बर्बर तुर्क जातियों का संहार करते करते ही यह महावीर उस ठंडे मरुस्थल में हमेशा के लिये विलीन हो गया।
कुछ पश्चिमी इतिहासकारों ने उन्हें इस अभियान के लिए "भारत के सिकंदर" की पदवी दी।परंतु उनकी वास्तविक महानता थी-- अरबों को पराजित कर और मध्यएशिया में भारतीय खड्ग का आतंक जमाकर इस्लाम के हमले को अगले 200 वर्षों तक रोकना।
आज कश्मीर में उनकी पुण्यस्मृतियाँ उनके द्वारा बनावाये गये और उनकी ही इस्लाम द्वारा प्रदूषित कृतघ्न संततियों द्वारा तोड़े गये #मार्तण्ड #मंदिर के ध्वंसावशेषों की ही तरह उपेक्षित है क्योंकि उनकी संततियां जबरदस्ती लादे गये उसी धर्म के विषैले प्रभाव में झूम रहीं हैं जिससे संघर्ष करते हुए उनके इस महान पूर्वज का सारा जीवन बीता था।
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स्रोत:
1- राजतरंगिणी -- कल्हण
2- याज्ञवल्क्य स्मृति
3- किताब उल हिंद - अल बरूनी
4- श्रेण्य युग - आर सी मजूमदार
5- भारत का राजनैतिक व सांस्कृतिक इतिहास : विमल चंद्र पांडे
6- हरमन गोट्ज
7-आंद्रे विट्ज
अद्भुत
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