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Showing posts from May, 2025

जीवन की धार

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एक ताकतवर लकड़हारा लकड़ी के व्यापारी के यहां नौकरी करता था. वेतन और काम का माहौल अच्छा था, तो लकड़हारे ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ देने का निश्चय किया. मालिक ने उसे एक कुल्हाड़ी दी और वह क्षेत्र दिखाया जहाँ उसे काम करना था. पहले दिन लकड़हारा 18 पेड़ काटकर लाया. मालिक बहुत खुश हुआ और उसने लकड़हारे को बधाई दी.  . मालिक की शाबाशी से प्रेरित होकर, लकड़हारा अगले दिन फिर जुट गया. शाम को उसने पेड़ गिने तो वह सिर्फ 15 पेड़ ही काट सका था. लकड़हारे ने सोचा कोई बात नहीं कल इसकी पूर्ती कर दूंगा. तीसरे दिन फिर उसी जोश से जुट गया. शाम को उसने पेड़ गिने तो हैरान रह गया. वह केवल 10 पेड़ ही काट सका था. उसे कुछ समझ नहीं आया. मन ही मन सोचा कि मैं कल और ताकत लगाऊंगा और गिनती को पूरा करूँगा. लेकिन हर दिन लकड़हारा पहले दिन से कम पेड़ ला पाता. लकड़हारे को लगा कि वह अपनी ताकत खो रहा है. वह अपने मालिक के पास गया और क्षमा याचना करते हुए कहा: मालिक, हर रोज़ मेरे पेड़ कम होते जा रहे हैं जबकि ताकत मैं हर दिन ज्यादा लगा रहा हूँ.  . मालिक ने कुछ सोचकर पूछा: आखिरी बार तुमने अपनी कुल्हाड़ी को धार कब लगाई थी? ...

रिवर्स लव जिहाद

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सर्दियों की रात थी। हरखू अपनी खाट पर लेटा खिड़की के बाहर घने कोहरे को ताक रहा था। हवा इतनी ठंडी थी कि उसके हाथ-पैर सुन्न हो रहे थे, लेकिन उसके मन में एक अजीब सी गर्माहट थी।  घर के कोने में ज़मीला बैठी, चूल्हे में जलती लकड़ियों को धीमा करने की कोशिश कर रही थी। उसकी साड़ी का पल्लू आधा कंधे से सरक गया था, और माथे पर झूलती उसकी जुल्फें किसी कवि की कल्पना को सजीव कर रही थीं। “हरखू, तुम खेत में इतने देर तक क्यों रहे? लगता है ठंड में वहीं गर्मी का जुगाड़ मिल गया है।” ज़मीला ने शरारती लहजे में कहा। हरखू ने खाट से उठते हुए जवाब दिया, “खेती का काम मजाक नहीं है, ज़मीला। और फिर, ये ठंड भी क्या चीज़ है जब तुझ जैसे अंगारे घर में जलते हों।” ज़मीला हँस पड़ी। “बड़े मीठे बोल बोल रहे हो आज। जरूर कुछ गुल खिला आए हो बाहर,” उसने चूल्हे में एक और लकड़ी डालते हुए कहा। हरखू उसके पास जाकर बैठ गया। “गुल तो तेरे साथ ही खिलाने का मन है, ज़मीला। आज गाँव की चौपाल पर तेरा ज़िक्र हो रहा था। बटेसर काका कह रहे थे कि मैं कितना किस्मत वाला हूँ जो मुझे तेरी जैसी बीवी मिली।” ज़मीला ने उसकी ओर तिरछी नजरों से ...

शहीद shaheed

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हर साल, वह उस भूमि पर जाते हैं, जहाँ से उनका बेटा कभी वापस नहीं लौटा…   IGI Airport पर, एक विनम्र व्यक्ति Departure Gate पर चुपचाप लाइन में खड़ा इंतजार कर रहा है। वह श्रीनगर जा रहा है। छुट्टी मनाने के लिए नहीं।  किसी business Trip के लिए भी नहीं।  बल्कि एक भावनात्मक तीर्थयात्रा के लिए।  कर्नल वीरेंद्र थापर कारगिल के पास द्रास जा रहे हैं........ एक ऐसी यात्रा जो वह हर साल करते हैं। यह उनके 22 वर्षीय बेटे लेफ्टिनेंट विजयंत थापर का अंतिम विश्राम स्थल है, जिन्होंने 1999 के #कारगिल युद्ध के दौरान अपनी जान दे दी थी।  अपने अंतिम मिशन से पहले, लेफ्टिनेंट विजयंत ने अपने माता-पिता को एक दिल दहला देने वाला पत्र लिखा था............ जिसमें उन्होंने अपने पिता से एक दिन उस स्थान पर जाने के लिए कहा, जहाँ वह और उनके साथी सैनिक डटे रहे... और शहीद हो गए।  कर्नल थापर ने उस वादे को पूरा किया है - हर साल, बिना चूके।  कोई कैमरा नहीं। कोई सुर्खियाँ नहीं।  बस एक पिता अपने बेटे से किया वादा निभा रहा है… और अपने देश से भी।  यह सिर्फ़ युद्ध की कहानी नहीं...

L13 - जंगल की वो तस्वीर

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जंगल की वो तस्वीर (स्थान: स्पोकेन, वॉशिंगटन | समय: जुलाई 1968) स्पोकेन की गलियों में वो जुलाई की सुबह आम नहीं थी। शहर के एक पुराने नोटिस बोर्ड पर कुछ लोगों की नजर एक अजीब तस्वीर पर पड़ी।  तस्वीर में एक लड़की थी सांवला चेहरा, बड़ी-बड़ी डरी हुई आँखें और उसके चारों ओर लकड़ी के तख्तों का ताबूत जैसा घेरा। जैसे वो ज़िंदा होकर भी दफन थी।  तस्वीर के नीचे एक चिट लगी थी- "मैं जंगल में दफन हूं, तुम्हारे पास मुझे खोजने के लिए केवल 5 दिन हैं।" लोग हँसे। कुछ ने सोचा यह कोई हॉरर फिल्म का प्रचार है, कुछ ने इसे किसी पागल का मज़ाक समझा।  तस्वीर वहीं लगी रही, और समय बीतता गया। दूसरे दिन स्थानीय अख़बार में एक छोटी सी खबर छपी- "किम बर्ड, 25 वर्षीय स्कूल शिक्षिका,  दो दिन पहले रहस्यमयी ढंग से लापता हुई हैं।  पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला है।" सारा, जो किम के साथ उसी स्कूल में पढ़ाती थी, बाजार से लौटते समय उस नोटिस बोर्ड के पास से गुज़री।  उसकी नज़र अचानक उस तस्वीर पर पड़ी और उसका चेहरा सफेद पड़ गया। "ये तो किम है!" उसने भागते हुए पास के पुलिस स्टेशन का रुख किया। तीसर...

खोई हुई गुड़िया - The lost doll

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40 वर्ष की आयु में, फ्रांज़ काफ्का (1883-1924), जो कभी विवाह नहीं कर सके और जिनकी कोई संतान नहीं थी, एक दिन बर्लिन के एक पार्क में टहल रहे थे। वहाँ उनकी मुलाकात एक छोटी लड़की से हुई, जो अपनी प्रिय गुड़िया खो जाने के कारण रो रही थी। काफ्का और वह लड़की मिलकर गुड़िया को खोजने लगे, लेकिन असफल रहे। काफ्का ने लड़की से कहा कि वह अगले दिन भी वहीं मिले, और वे फिर से गुड़िया को खोजेंगे। अगले दिन जब गुड़िया नहीं मिली, तो काफ्का ने लड़की को गुड़िया के नाम से लिखा एक पत्र दिया। उसमें लिखा था, "कृपया रोओ मत। मैं दुनिया घूमने निकली हूँ। मैं तुम्हें अपनी यात्राओं के बारे में पत्र लिखती रहूंगी।" इस तरह एक कहानी की शुरुआत हुई, जो काफ्का के जीवन के अंत तक चली। हर मुलाकात में काफ्का बड़े प्यार से गुड़िया के पत्र पढ़कर सुनाते, जिनमें उसकी रोमांचक यात्राओं का वर्णन होता था। लड़की को ये पत्र बहुत प्रिय लगते। आखिरकार, काफ्का ने एक गुड़िया खरीदी और उसे लड़की को दिया, यह कहकर कि उसकी गुड़िया लौट आई है। लड़की ने कहा, "यह तो मेरी गुड़िया जैसी नहीं दिखती।" काफ्का ने उसे एक और पत्र द...