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Showing posts from December, 2018

स्वर्ण कौन... सामान्य कौन हैं👍

स्वर्ण कौन सामान्य कौन हैं👍  आओ बताता हूँ .... Narendra Modi जी ध्यान से सुनना ...

मोदी की चिंता मत करो, अपनी और अपनी आने वाली पिढीयौ की चिंता करो,...

मोदी की चिंता मत करो, अपनी और अपनी आने वाली पिढीयौ की चिंता करो,, ये आखिरी मौका है। फिर कोई नरेन्द्र मोदी जेसा हिंदुवादी शासक नहीं मिलेगा। मन की हल्दीघाटी में, राणा के भाले डोले हैं, यूँ लगता है चीख चीख कर, वीर शिवाजी बोले हैं,

विधानसभा चुनाव 2018 : BJP की हार और उसके कारण

ऐसा है न ! अब हार हुई है तो हुई है .चुपचाप एक्सेप्ट करो. मारजिन बहुत कम है मतलब आपको हराया गया है...मतलब आपके अपने लोग ही आपसे नाराज थे.मतलब आप लोकल कार्यकर्ताओ को गाजर मूली समझते हैं.

थेथर होती हैं औरतें...

थेथर होती हैं औरतें । सर्दियों में शादियों में स्त्रियों के स्वेटर न पहनने पर खूब बात होती है चुटकुले बनते हैं  वजह तो पता होगी! न पता हो तो मैं बता देती हूँ । थेथर होती हैं औरतें कभी सर्दी की ठण्ड  सुबह जब आप रजाई में दुबके होते हो तब नहा कर चौके में जाकर आपके  लिए नाश्ता बनाती माँ या पत्नी की बात कर पूछते हैं क्या स्त्रियाँ किस मिट्टी की बनी होती हैं उन्हें ठण्ड क्यों नहीं लगती । उस वक्त आप उन्हें ममतामई ,महान, देवी और जाने क्या कह कर बेवकूफ बना ले जाते हैं । तब चुटकुले आपकी हलक में फंस जाते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी का उद्बोधन विराट धर्म संसद, रामलीला मैदान दिल्ली, दिनांक 09/12/2018

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी का उद्बोधन विराट धर्म संसद, रामलीला मैदान दिल्ली 09/12/2018 स्थान - नई दिल्ली.                     यहां पर उपस्थित संतों की विशाल धर्मसभा के दर्शन करके हम सब धन्य हैं. हम सब के अन्तःकरण की भावनाओं को पूज्य संतों ने शब्द रूप दिया है.

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ...तू किसी रेल-सी गुज़रती है मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता ह वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ  एक जंगल है तेरी आँखों में मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ  तू किसी रेल-सी गुज़रती है मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ 

महाभारत के युद्ध के बाद. . .

                     18 दिन के युद्ध ने, द्रोपदी की उम्र को 80 वर्ष जैसा कर दिया था... शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी ! उसकी आंखे मानो किसी खड्डे में धंस गई थी, उनके नीचे के काले घेरों ने उसके रक्ताभ कपोलों को भी अपनी सीमा में ले लिया था !

अयोध्या - क्या हुआ था 6 दिसम्बर को और उससे पहले

अयोध्या का अर्थ है जिससे युद्ध जीता न जा सके। लेकिन अयोध्या के इस अर्थ पर प्रश्नचिन्ह लगाते तीन गुम्बद वहाँ खड़े थे जिन्हें आज से लगभग 25 वर्ष पूर्व 6 दिसम्बर, 1992 को ढ़हा दिया गया। अब अयोध्या पुनः अपने अर्थ को जीने लगी है।