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जैसलमेर में 1966 के बाद नही हुआ लव जेहाद

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*जैसलमेर में 1966 के बाद सामने नही आया कोई भी लव जेहाद का ममल्स*                         जैसलमेर में एक ब्राह्मण ने ऐसे लव जिहादियों की गर्दन ऐसे उतरवाई की तब से आज तक वहां कोई लव जिहाद का केस नहीं आया   जैसलमेर जिले के मुस्लिम गाँव सनावाडा में 1966 में हुई एक घटना बतला रहा हूँ। *मुस्लिम बाहुल्य गाँव था सनावाड़ा ,जहाँ का सरपंच मुस्लिम था।* सरपंच का *पुत्र जोधपुर में पढाई कर रहा था। गर्मी के अवकाश में लड़का अपने गाँव आया हुआ* था।  *पास के गाँव के एकमात्र श्रीमाली ब्राह्मण परिवार की कन्या सरपंच के पुत्र को भा गई। पहले तो पिता ने पुत्र को समझाया। धर्म और मजहब में अंतर बताया किन्तु जब पुत्र जिद्द पर अड़ गया तो सरपंच 10 मुसलमानों को साथ लेकर ब्राह्मण के घर गया और कन्या का हाथ (बलपूर्वक) अपने पुत्र के लिए माँगा।* ब्राह्मण परिवार पर तो मानो ब्रजपात हो गया हो। किन्तु कुछ सोचकर ब्राह्मणदेव ने दो माह का समय माँगा। *दूसरे दिन हताश ब्राह्मणदेव पास के राजपूत गाँव में वहां के ठाकुर के निवास पर गये , और निव...

कलाई पर बंधा धागा और लड़के

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कलाई पर बंधे धागे का रंग उड़ गया है। उसके रेशे अब मेरी घड़ी में फंसकर टूटने लगे हैं। मंदिर वाले जोगी ने बताया था कि रक्षासूत्र या कलाई में बांधे गए धागों को पुराना होने पर तोड़ देना चाहिए, पर मैं अबतक न जाने क्यों रुका हूं।  मुझे धागे को बांध कर रखने के लिए किसी ने नही कहा। उस लड़की ने भी नही जिसने इन सूत के धागों को नम आंखों से मेरी कलाई पर ये कहते हुए बांधा था कि वो वापस आ जाएगी धागों के टूटने से पहले। मैं अक्सर ही लड़कों को सिगरेट पीते हुए देखता हूँ। उंगलियों में फंसी सिगरेट जबतक मुह को आती है, उनके शर्ट की आस्तीन थोड़ा नीचे खिसक कर उनकी कलाई में बंधे बेरंग धागे और कटने निशान साफ जाहिर कर देती है। मुस्कुराते हुए चेहरे पर मुर्दों जैसी आंखें रखने वाले लड़कों को पता है, समाज उनसे उम्मीदें रखता है, और मां-बाप, प्रेमिका, दोस्त, सब इसी समाज के हिस्से हैं। लड़कों की उम्मीदें उनकी प्रेयसी तोड़ देती है, और लड़कों के मन को समाज। टूटे हुए लड़के, खुद को समेट कर किसी एकांत में जा कर जब चैन से सिगरेट जलाते हैं, तब उनकी आस्तीन थोड़ा नीचे खिसक कर, उनकी कलाई पर बंधा हुआ धागा, और कटने के निशान ज़ा...

मणिकर्णिका घाट - काशी

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मान्यता है कि काशी की मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव ने देवी सती के शव की दाहक्रिया की थी। तबसे वह महाशमशान है, जहाँ चिता की अग्नि कभी नहीं बुझती। एक चिता के बुझने से पूर्व ही दूसरी चिता में आग लगा दी जाती है। वह मृत्यु की लौ है जो कभी नहीं बुझती, जीवन की हर ज्योति अंततः उसी लौ में समाहित हो जाती है। शिव संहार के देवता हैं न, तो इसीलिए मणिकर्णिका की ज्योति शिव की ज्योति जैसी ही है, जिसमें अंततः सभी को समाहित हो ही जाना है। इसी मणिकर्णिका के महाश्मशान में शिव होली खेलते हैं।      शमशान में होली खेलने का अर्थ समझते हैं? मनुष्य सबसे अधिक मृत्यु से भयभीत होता है। उसके हर भय का अंतिम कारण अपनी या अपनों की मृत्यु ही होती है। श्मशान में होली खेलने का अर्थ है उस भय से मुक्ति पा लेना।        शिव किसी शरीर मात्र का नाम नहीं है, शिव वैराग्य की उस चरम अवस्था का नाम है जब व्यक्ति मृत्यु की पीड़ा,भय या अवसाद से मुक्त हो जाता है। शिव होने का अर्थ है वैराग्य की उस ऊँचाई पर पहुँच जाना जब किसी की मृत्यु कष्ट न दे, बल्कि उसे भी जीवन का एक आवश्यक हिस्सा मान कर उसे...

विक्रमादित्य के नवरत्न | Navratna of king Vikramaditya

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विक्रमादित्य के नवरत्न | Navratna of king Vikramaditya आपने अकबर के नवरत्नों के बारे में तो जरूर सुना होगा। आज हम जानेंगे राजा विक्रमादित्य के नवरत्न के बारे मे...... सनातन धर्म मे आज हम आपको विक्रमादित्य के नव रत्नों के बारे में संक्षेप में बता रहे हैं।  राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों के विषय में बहुत कुछ पढ़ा-देखा जाता है। लेकिन बहुत ही कम लोग ये जानते हैं कि आखिर ये नवरत्न थे कौन-कौन।  राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। चलिए जानते हैं कौन थे।   ये हैं नवरत्न – 1–धन्वन्तरि- नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं। चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है। 2–क्षपणक- जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे। इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में ...

80 के दशक का बचपन

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मै 80 के दशक का बचपन हूं... मैंने एनर्जी के लिए रुहआफ्जा से लेकर ट्रॉपिकाना तक का सफर तय किया है, माचिस की डब्बी वाले फोन से स्मार्टफोन तक का सफर तय किया है, मै वो समय हूं जब तरबूज बहुत ही बड़ा और गोलाकार होता था पर अब लंबा और छोटा हो गया, मैंने चाचा चौधरी से लेकर सपना चौधरी तक का सफर तय किया है, मैंने बालों में सरसों के तेल से लेकर जैल तक का सफर तय किया है चूल्हे की रोटी में लगी राख़ का भी स्वाद लिया है  मैंने दूरदर्शन से लेकर 500 निजी चैनल तक का सफर तय किया है। मैंने खट्टे मीठे बेरों से लेकर कीवी तक का सफर तय किया है। संतरे की गोली से किंडर जोय तक का सफर तय किया है। आज की पीढ़ी का दम तोड़ता हुआ बचपन में देख रहा हूं लेकिन आज की पीढ़ी मेरे समय के बचपन की कल्पना भी नहीं कर सकती। मैंने ब्लैक एंड व्हाइट समय में रंगीन और गरीबी में बहुत अमीर बचपन जिया है। मेरे बचपन के समय को कोटि कोटि धन्यवाद।

पढ़िए एक हिन्दू बेटी के साथ हुए षडयंत्रों की वह सत्य कथा जिसने इंजीनियर दीपक त्यागी को स्वामी यति नरसिंहानन्द सरस्वती बनने पर विवश कर दिया !

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यति नरसिंहानन्द सरस्वती महाराज की कलम✍️ से ---- 👉  पढ़िए एक हिन्दू बेटी के साथ हुए षडयंत्रों  की वह सत्य कथा जिसने इंजीनियर दीपक त्यागी को स्वामी यति नरसिंहानन्द सरस्वती बनने पर विवश कर दिया ! मैं यति नरसिंहानंद सरस्वती डासना देवी मन्दिर का महंत हूँ।आज आप लोगो को वो कहानी सुनाना चाहता हूँ जिसने मुझे हिन्दू बनाया। मेरे जैसे लोगो की कहानिया कभी पूरी नहीँ होती क्योंकि जीवन हम जैसो के लिए बहुत क्रूर होता है।मेरी बहुत इच्छा है कुछ किताबे लिखने की पर शायद ये कभी नहीँ हो सकेगा क्योंकि हमारे क्षेत्र के मुसलमानो ने जीवन को एक नर्क में परिवर्तित कर दिया है जिससे निकालने की संभावना केवल मृत्यु में है और किसी में नहीँ है।मैं धन्यवाद देता हूँ सोशल मीडिया को जिसने अपनी बात रखने के लिये मुझ जैसो को एक मंच दिया है और मैं अपने दर्द को आप लोगो तक पहुँचा पाता हूँ।आज मैं आपको अपने जीवन की वो घटना बताना चाहता हूँ जिसने मेरे जीवन को बदल दिया था।ये एक लड़की की दर्दनाक और सच्ची कहानी है जिसने बाद में शायद आत्महत्या कर ली थी।इस घटना ने मेरे जीवन पर इतना गहरा प्रभाव डाला की मेरा सब कुछ बदल ...

श्री रामचन्द्र जी का वनवास मार्ग | Shree Ramchandra ji ka vanvas marg

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श्री राम चन्द्र जी का वनवास मार्ग 1.तमसा नदी : अयोध्या से 20 किमी दूर है तमसा नदी। यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की। 2.श्रृंगवेरपुर तीर्थ : प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है।   3.कुरई गांव : सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे।   4.प्रयाग: कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। कुछ महीने पहले तक प्रयाग को इलाहाबाद कहा जाता था ।   5.चित्रकूणट : प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं।   6.सतना: चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा...